पहली मुलाकात
" सुबह के 7:00 बजे नमामि का फोन बजता है।
"हेलो"
"हेलो ,हां नमामि तुम आ रही होना?"
"हा, मैं आ रही हु, बस में बैठ चुकी हूं।"
"अच्छा,अरे वाह तुम तो सच मे आ रही हो।"
"मतलब"
"मुझे लगा तुम नही आओगी, चलो आ रहा हु मैं भी, तुम पहुच कर कॉल करना।"
नमामि ने फोन काटा और विचारों में खो गयी।
आज से एक महीने 3 दिन पहले ही उसकी व्योम से ऑनलाइन किसी साइट पर दोस्ती हुई थी। धीरे धीरे बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और वो कब इतने करीब आ गए पता ही नही चला।
दोनों एक दुसरे के मन की बातों को बिना कहे समझने लगे थे।एक दूसरे में वो अपना सहारा ढूंढने लगे थे। फिर एक दिन उनका मिलने का तय हुआ।
नमामि आज व्योम से पहली बार मिलने जा रही थी। पता नही क्यु उसने एक बार भी नही सोचा कि की किसी अनजान शख्श से जिससे वो सिर्फ फोन पर बात करती थी उसके लिए अनजान शहर ने अकेले मिलने जा रही है।
क्या यह सही है, क्या किसी से ऐसा मिलना ठीक रहेगा।
खैर...
उसका स्टेशन आ गया था वो बस से उतर चुकी थी पर उसे व्योम कही दिखाई नही दे रहा था।
उसने उसे कॉल किया
" बस नमामि 5 मिनिट में पहुच रहा हु।"
नमामि ने "ठीक है"कहकर फोन काट दिया।
कुछ ही मिनटों में व्योम पहुच चुका था,
नमामि व्योम के साथ उसकी बाइक पर बैठ गयी और दोनों चले जाते है उस किले की तरफ जहां उसे घुमाने का व्योम ने वादा किया था।
पर ये क्या उस भव्य पुराने किले में घूमने की बजाय नमामि ने व्योम से कहा कि
"क्यु न हम यही इस झरोखे में बेठे' यही से इस नदी को बहते देखना चाहती हु।"
व्योम ने नमामि की बात मान ली और वही बैठ गए।
नमामि के मन मे कई बाते चल रही थी।
हालांकि व्योम भी उसके मन को बखूबी पढ़ रहा था।
नमामि अपने बीते हुए कल और आने वाले कल में उलझी हुई थी।
वही व्योम नमामि में अपना भविष्य देख रहा था।
नमामि शांत सी होकर सामने बहती हुई नदी को देख रही थी
व्योम अपनी आदत के अनुसार बोलते ही जा रहा था,बीच बीच मे नमामि भी उसकी बातो का जवाब मुसकुरा कर देती।
अब व्योम ने उसका हाथ अपने हाथ मे ले लिया और नमामि की आँखों मे देखकर बोलने लगा।
नमामि स्तब्ध होकर उसकी बाते सुनने लगी।
पता नही कैसे व्योम ,नमामि के मन मे उठने वाली हर बात को हूबहू बोलते जा रहा था।
नमामि ने व्योम के मुह पर हाथ रख दिया।
बस करो व्योम तुम मेरे मन को पढ़े जा रहे हो
मेरे मन मे इतने प्रश्न थे तुम उन सबको हल करते जा रहे थे।
तुम कौन हो जो इतना गहराई से मुझे पढ़ रहे हो।
नमामि के मन की शंकाएं सभी उलझने अब दूर हो चुकी थी।
उसका यहा आने का फैसला सही था।
वो उस किले की नक्काशी और उस बहती नदी को भूल चुकी थी।
अब उसके मन मे एक अलग आत्मविश्वास था।
वही व्योम भी नमामि से मिलकर निश्चिंत था। उसे नमामि में अपना हमसफर दिखने लगा था।
वो इस मुलाकात में ही यह तय कर चुका था कि नमामि ही उसकी मंजिल है।
बात करते करते कब समय बीत गया पता नही चला।
अब उन दोनों के जाने का वक्त आ गया था।
दोनों ने एक दूसरे का हाथ पकड़ा और वापिस जाने लगे इस वादे के साथ कि जल्द ही फिर से मिलेंगे।
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Aliya khan
07-Jul-2021 04:40 AM
Nice
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Natash
19-May-2021 04:51 PM
वाह सर , बहुत अच्छे ।
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आशिष पण्डित
19-May-2021 06:23 PM
धन्यवाद सर जी
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